Sahil Shrma

Sahil Shrma
property dealer

About me

Raipur, chhatisgarh, India
Property dealer bas aap logon ka ashirwaad caahiye. "jai hind"

Wednesday, September 2, 2009

पर्यावरण

क्या है पर्यावरण :-
पर्यावरण को सरल शब्दों में वातावरण कहा जा सकता है। औसत आदमी को ैभी यह अनुभव होगा कि उसके आसपास का वातावरण साफ-सुथरा होगा तो उसका मन प्रसन्न और शरीर स्वस्थ्य रहेगा। अगर उसके आसपास दुर्गध और गंदगी होगी तो निश्चित रूप से उसका मन अप्रसन्न और बीमार होने का डर बना रहेगा। अत: वातावरण ही पर्यावरण है और दुर्गंध ही प्रदूषण है। विस्तृत अर्थ में पर्यावरण के अंतर्गत प्राकृ तिक वातावरण में स्थित हवा-पानी, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, नदियां-पहाड़, आदि सब सम्मिलित है। प्राकृति में यह सब अवयव दूषित होने से मानव जीवन पर सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ता है। सवाल उठना लाजिमी है कि कि तरह प्रदूषण फैल रहा है।कैसे बिगड़ रहा है पर्यावरण:- आज निश्चय ही प्रत्येक मानव प्रदूषण फैला रहा है। खान पान से लेकर रहन-सहन तक यानी पूरी जीवन-शैली ही प्रदूषण उत्पन्न कर रही है। मसलन हम सुबह उठते हुए ही दातून या मंजन की जगह टूथपेस्ट का इस्तेमाल कर रहे है। टूथपेस्ट प्राकृतिक नहीं एक रासायनिक यौगिक है जिसमें मौजूद फ्लाराइड व अन्य रसायन शरीर के लिए घातक साबित हुए हैं। हम रोजाना सुबह साफ किए हुए कचरे को आसपास फेक देते है जो कि प्रदूषण पैदा करता है यह कचरा अगर मुक्कड़ पर ही पड़ सड़ता रहे तो दुर्गंध के साथ ही मक्खी-मच्छर जैसे जीवाणओं को जन्म देता है जो मलेरिया, हैजा, पेचिस, बुखार सहित कई ंगभीर बीमारियों को उत्पन्न करते है। मानव आज वाहन का सबसे ज्यादा प्रयोग कर रहा है वाहनों से निकलने वाले धुए में कार्बन डाई-आक्साईड, सल्फर डाई-आक्साइड जैसी जहरीली गैस व सीसे जैसे घातक रसायन के कण होते है जो वायु को प्रदूषित करने के साथ जीवीकोपार्जन के लिए जो-जो उद्योग स्थापित किए है वे सब हवा-पानी में जहर घोल रहे है।? इतना ही नहीं हमारे खाद्यान्न उत्पादन के लिए की जा रही खेती में भी रसायनों के बढ़ते प्रयोग से हमारे अनाज, सब्जी एवं फल तक जहर के अंशो से युक्त है। खाने-पीने की अन्य वस्तुओं में भी रासायनिक मिश्रण बेहद नुक्सान देह है। क्यों जरूरी है पर्यावरण सुधारना :- पर्यावरण के मुद्दे पर बाकतचीत में अक्सर यह कहा जाता है कि सांस लेने लायक हवा और पीने लायक पानी भी नहीं मिलेगा। इस नारे ने औसत आदमी को उस तरह से नहीं झकझोरा कि वह तुरंत प्रतिक्रिया में उपायों को अमल में ले आए। यह वाक्य भविष्य की डरावनी तस्वीर तो खींचता है लेकिन मौजूदा नुक्सान को प्रदर्शित नहीं करता। यथार्थ में स्थिति यह है कि हम प्रदूषण की वजह से हजारों करोड़ रुपये की हानि के साथ ही जीवन कष्टमय तरीके से बिता रहे है । रही बात मौत की तो विश्व स्वास्थ्य संगठन और सेंटर फार साईंस एनवायरमेंट की रिपोर्ट बताती है कि केवल वायु प्रदूषण से ही हर साल भारत में 56,000 से ज्यादा मौंते हो रही है यानी हर रोज डेढ़ सौ से ज्यादा मौत। इतना ही नहीं सैकड़ों लोग फेफड़े और हृदय की जानलेवा बीमारियों से ग्रस्त हो रहे है। यह तो मात्र वायु प्रदूषण का मामला है। खेती में कीटनाशक के प्रदूषण से 20,000 मौत हर साल हो रही है और दस लाख लोग विषाक्त प्रभाव से ग्रसित होते है। फल सब्जी में जहर से माताओं का दूध तक जहर के अंश से युक्त हो गया है। एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रदूषण से उत्पन्न बीमारियों पर हर साल 40,000 करोड़ रुपए खर्च होता है। आज हम जो नयी-नयी बीमारियों से ग्रसित हो रहे है उसमें प्रदूषण महत्वपूर्ण कारण है। दवा में खर्च हो रहा धन प्रदूषण की भेंट चढ़ रहा है। इसके साथ ही आज मनुष्य में उपज रही थकान, स्वभाव में चिड़चिड़ापन और जिससे उत्पन्न हताशा से आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति एवं कुंठाजनित अपराध ने समाज के समक्ष चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। कुल मिलाकर प्रदूषण से हम स्वास्थ्य ही नहीं धन का हृास भी दिन प्रतिदिन कर रहे है। अगर जीवन में उल्लास व उमंग ही नहीं होगी तो जीवन का अर्थ ही क्या? अत: क्या जरूरी नहीं हो जाता कि हम अपने वातावरण को साफ-सुथरा एवं जीने लायक बनाएं?पर्यावरण सुधार के लिए आम जनता से अपील :-आज हम प्रदूषण की जंजीरों से जकड़े हुए है। सांस लेने को न शुद्ध हवा है ना ही पीने को साफ पा नी। जीवन नरक में तब्दील हो गया है। इसके जिम्मेदार हम ही हैं।। सपथ ले कि न प्रदूषण फैलाएंगे और न फैलाने देंगे। निम्न कार्यों पर आज ही से अमल करें :-
(1) सर्वप्रथम कचरे से पुन: उपयोगी पर्दाथ जैसे कांच, धातु, कागज व प्लास्टिक को अलग करें। सर्वाधित प्रदूषणकारी प्लास्टिक को कचरे के साथ कदापि न फेंके। प्लास्टिक को पुन: उपयोग में लाएं।
(2) प्लास्टिक थेैली में कचरे को बंद करके न फेंके, चूकि प्लास्टिक गलनशील नहीं है अत: थेली में बंद कचरा नष्ट नहीं होता।
(3) कचरे को खुली सड़क या नाली के जगह सार्वजनिक संग्रह पात्र में ही फेकें।
(4) अपने आसपास कचरे को बहुत दिनौों तक इकट्ठा न होने दें। उसे साफ करवाते रहे।
(5) पानी छानकर और उबालकर पियें।
(6) हैन्डपंप और बोरिंग के आसपास गंदगी न फैलाएं।
(7) तालाबों का संरक्षण करें और उसमें गंदगी न फैलाएं।
(8) वाहन की नियमित जांच करवाएं और कम से कम उपयोग करें।
(9) फिजूल में बिजली न जलाएं।
(10) कम से कम पांच वृक्षोंं का रोपण करें।आओ पर्यावरण को प्रदूषण की गुलामी से मुक्त करे एक आंदोलन का सूत्रिपात करें।

Monday, August 31, 2009

संगठन विहीन कांग्रेस का कैसे होगा कल्याण ?

कभी कांग्रेस नेताओं की ये सोच थी कि कांग्रेस को वोट देना जनता की मजबूरी है क्योंकि कांग्रेस के अलावा कोई भी पार्टी स्थिर सरकार नहीं दे सकती। विपक्षी दलों के लिए भी बड़ी चुनौती थी कि उनके दल की सरकार पूरे पांच साल तक नहीं चल पाती है। लेकिन ये मिथक टूटा बल्कि यह भी साबित हुआ कि लोग सरकारें बदलने की जगह पुरानी सरकार को चुनने से भी नहीं हिचकते। केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी ने 24 दलों की खिचड़ी सरकार को पांच साल तक चलाकर भ्रम तोड़ा तो गुजरात मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में यह आशंकाएं निर्मूल हो गई कि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में दुबारा नहीं आती। अब वो समय भी नहीं रहा है कि केंद्र में विरोधी दल की सरकार प्रदेशों में राजपाट बदल दें या सरकार को भंग कर दे लोग जागरूक हुए है तो पार्टियों का आधार भी मजबूत हुआ है। सो,अब कांग्रेस गांधी-नेहरू परिवार के करिश्माई नेतृत्व के अलावा संगठन को मजबूत कर अपना अस्तित्व बचाने के साथ ही खोई हुई प्रतिष्ठा की जुगत में है। हाल ही में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में युवा नेतृत्व के चलते जर्बदस्त फायदा हुआ है और पार्टी जिन राज्यों में संगठन को मजबूत कर रही है उसे लाभ भी मिल रहा है। इधर, इसके विपरीत छत्तीसगढ़ में कांग्रेस लगातार रसातल की ओर अग्रसर है। संगठन यहां नाममात्र को है। गुटबाजी पर कोई लगाम नहीं है। सबसे बड़ी बात ये है कि केंद्रीय स्तर पर प्रदेश के चारो अलग-अलग गुट की पहुंच है जिसके चलते एक गुट के हाथों में कमान नहीं आ पा रही है । पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की बीमारी के दौरान राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा गुट को अवसर मिला था कि वे संगठन में अपनी जड़े मजबूत करने के साथ ही जनता के बीच में अपनी प्रभावी स्थिति बना सकते थे लेकिन इस गुट के नेताओं में जमीनी राजनीति की जगह एयरकंडीशन रूम में समय व्यतीत कर दिया। अब श्री जोगी वापस आ गए ये उनकी तानाशाही और वर्चस्व की अफवाहों से अपनी गद्दी सलामत रखना चाहते हैं। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी का पिछले पांच साल से गठन नहीं हो सका है। वर्तमान में जो कमेटी कार्य कर रही है वह पुरानी है और उसके पुनर्गठन की कवायद कई बार की जा चुकी है लेकिन कांग्र्रेस तो कांग्रेस है सो हर बार मनोनीत अध्यक्षों को नई दिल्ली से मायूस होकर लौटना पड़ता है। सन् 2008 के विधानसभा और हाल ही में 2009 लोकसभा चुनाव में पार्टी की बुरीगत होने के बाद फिर से प्रदेश अध्यक्ष के मनोनयन की उठापटक की खबरें हंै। अध्यक्ष और दो कार्यकारी अध्यक्षों के फार्मूले के बाद भी पार्टी में बाकी पदों पर मोतीलाल वोरा गुट का ही वर्चस्व है और अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल और महेंद्र कर्मा- भूपेश बघेल गुट के नेता हाशिए पर है।यहां यह बताना लाजमी होगा कि प्रदेश में चार अलग-अलग गुट हैं। पहला गुट मोतीलाल वोरा का है। स्वयं श्री वोरा भले ही छत्तीसगढ़ की राजनीति में ज्यादा रूचि नहीं लेते हो पर केंद्र में पार्टी के कोषाध्यक्ष है सो उनका पॉवर जर्बदस्त है। दूसरा गुट पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का है। मुख्यमंत्रित्व काल में उनका गुट बना और ये उस दौरान शक्तिशाली था। तीसरा गुट विद्याचरण शुक्ल का है। कभी श्री शुक्ल का जलवा हुआ करता था और अंचल में शुक्ल बंधुओं का दबदबा था जिसे पहले अर्जुन सिंह ने बाद में दिग्विजय सिंह ने तोड़ा। मोतीलाल वोरा छत्तीसगढ़ राज्य गठन के साथ ही पॉवरफुल हुए जब वे राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनाए गए। और चौथा गुट पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा और पूर्व उपनेता प्रतिपक्ष भूपेश बघेल का है जो अजीत जोगी की बीमारी के दौरान बना।दरअसल गुटों में बटी कांग्रेस के लिए सन् 2004 से लेकर 2007 तक का समय संगठन के लिहाज और जोगी विरोधी नेताओं के लिए स्वार्णिम अवसर का समय था क्योंकि उस दौरान श्री जोगी बिस्तर पर थे तो विद्याचरण शुक्ल पार्टी छोड़कर चले गए थे। ऐसे समय में वोरा गुट के नेताओं के कब्जे में कांग्रेस थी और ये लोग चाहते तो अपने कार्यो से अलग छवि बना सकते थे। श्री वोरा सन् 2004 में कुछ समय के लिए अध्यक्ष बने लेकिन उनके पास वक्त कहां था ? फिर दिग्विजय सिंह के करीबी डा. चरणदास महंत अध्यक्ष बनाए गए। लेकिन श्री महंत भी महेन्द्र कर्मा और भूपेश बघेल की तरह बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह से सौहार्द्र संबंध कायम कर संगठन को भुला बैठै। वे अपनी कार्यकारिणी तक नहीं बना सकें। डा. रमन सिंह से संबंधों के आरोप ने उन्हे पदावनत कर कार्यकारी अध्यक्ष बनवा दिया लेकिन इसी संबंध के चलते वे कोरबा से चुनाव भी जीत गए। विधानसभा चुनाव से पूर्व रायपुर जिला अध्यक्ष धनेंद्र साहू का जोरदार प्रमोशन प्रदेश अध्यक्ष के रूप में हुआ लेकिन वे न तो कार्यकारिणी बना पाए और ना ही विधानसभा चुनाव में पार्टी को जितवा पाए। बल्कि स्वयं भी हार गए। लब्बोलुआब ये है कि कांग्रेस को अब अपनी गलतियां सुधारनी होगी। सत्ता के लोभ में जो अराजक तत्वों की घुसपैठ हो गई है उन वापरसों को साफ करना होगा और संगठन में चुनाव की परपंरा शुरू करनी होगी। दो-चार असमाजिक तत्वों के हुडदंग से घबराने वालें खाक राजनीति करेगें ! सो ऐसे कायरों की पार्टी में क्या जरूरत है। आवश्यकता है कांग्रेस संगठन को मजबूत किया जाए और ये वक्त की मांग भी है।
1। What would you say are the most important green house gases?
आप क्या कहेंगे सबसे महत्वपूर्ण ग्रीन हाउस गैसों रहे हैं?
And what is their origin?
और उनके मूल क्या है?
Most global warming articles will include: सबसे ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग लेख शामिल होंगे:
Carbon Dioxide CO2 – कार्बन डाइऑक्साइड सीओ 2 --
From many sources. कई स्रोतों से. Natural ones include respiration and decay. प्राकृतिक वाले श्वसन और क्षय शामिल हैं. People create CO2 primarily through combustion, industry and transportation. लोगों सीओ 2 मुख्यतः दहन के माध्यम से बनाने के लिए, उद्योग और परिवहन. CARS! कार! CARS! कार! CARS! कार! Methane CH4 - A natural product of decomposition, including digestion and soil emissions. मीथेन CH4 - अपघटन का एक प्राकृतिक उत्पाद पाचन और उत्सर्जन मिट्टी सहित. So agriculture contributes this one consistently. तो कृषि यह लगातार एक योगदान देता है. Global warming articles indicate our industries tend to leak fuel gases containing this stuff. ग्लोबल वार्मिंग लेख संकेत हमारे उद्योगों को ईंधन की इस सामग्री से युक्त गैसों लीक करते हैं. Ozone O3 - at lower elevations – Like the others it traps radiation under its blanket. ओजोन कम उन्नयन पर O3 - दूसरों वह अपने कंबल के नीचे जाल विकिरण जैसे -. Some natural processes suck ozone from the ozone layer and bring it down to ground level according to a few global warming articles. कुछ प्राकृतिक ओजोन परत से चूसना ओजोन प्रक्रियाओं और इसे लाने के नीचे कुछ ग्लोबल वार्मिंग लेख के अनुसार स्तर की भूमि पर. We call this stratospheric intrusion. हम इस stratospheric घुसपैठ कहते हैं. Industry creates its fair share of ground-level ozone as well. उद्योग जमीन की अपनी उचित हिस्सा स्तर ओजोन के रूप में अच्छी तरह से बनाता है. Do not confuse it with stratospheric ozone, which we want to preserve. Stratospheric ओजोन है, जो हम चाहते हैं बनाए रखने के साथ भ्रमित मत करो. Certain emissions in the past have led to destruction of the ozone layer. कुछ उत्सर्जन में पिछले ओजोन परत के विनाश के लिए मार्ग प्रशस्त किया है. And it remains a frequent item in the news. और यह खबर में अक्सर आइटम बना हुआ है. See below. नीचे देखें. Nitrous Oxide N2O - Natural sources involve the decomposition of ammonia. नाइट्रोजनवाला ऑक्साइड N2O - प्राकृतिक स्रोतों अमोनिया के अपघटन शामिल है. Again, agriculture is a major contributor. फिर, कृषि एक प्रमुख योगदान है. Water vapor H2O - Evaporation puts this guy in the air. पानी भाप H2O - वाष्पीकरण हवा में इस आदमी डालता है. Of course, with global warming, the air will be able to "hold" more of this one. बेशक, ग्लोबल वार्मिंग के साथ, हवा के लिए "पकड़" यह एक के और अधिक सक्षम होंगे. One example is power plants, which release great quantities of steam. एक उदाहरण के बिजली संयंत्र, जो भाप के बड़ी मात्रा में जारी है. Halocarbons any gas whose chemical formulas includes a combination of C, H, F, Cl and numbers - Not produced naturally. Halocarbons किसी भी गैस जिसका फ़ार्मुलों रासायनिक सी, एच, एफ, सी.एल. और संख्या का एक संयोजन शामिल है - नहीं, स्वाभाविक रूप से उत्पादन किया. Used to propel aerosol sprays, manufacture foams, and enable refrigeration. के एयरोसोल स्प्रे, विनिर्माण foams में वृद्धि का प्रयोग किया, और प्रशीतन सकें. This is the group of culprits causing the problems addressed in the next question. यह अगले प्रश्न में संबोधित समस्याओं के कारण अपराधियों का समूह है. Aerosols - Also known as particulates. एयरोसौल्ज़ - के रूप में भी जाना जाता particulates. Naturally produced by fires and volcanoes. स्वाभाविक रूप से आग और ज्वालामुखियों द्वारा उत्पादन किया. Many human activities release dust and smoke. कई मानवीय गतिविधियों को जारी धूल और धुआँ. Bear in mind that without greenhouse gases, the whole planet would be at least 50°F colder than it is now. ध्यान में रखिए कि बिना ग्रीन हाउस गैसों, पूरी दुनिया कम से कम 50 ° F ठंडा हो जाएगा से यह अब है. So we need them. तो हम उन्हें जरूरत है.

Thursday, May 28, 2009

साहिल shrma

मेरा भारत महान